Top Places to visit in Namisharanya Dham

“भारत”- अपनी सांस्कृतिक और धार्मिक धरोहरों के लिए प्रसिद्द देश हैं और इन्ही धार्मिक धरोहरों में से एक है - उत्तरप्रदेश के सीतापुर जिले में स्थित "नैमिषारण्य" ये स्थान जनमानस में तीर्थ या पावन धाम के रूप में प्रसिद्द है इसीलिए कहा जाता है – तीरथ वर नैमिष विख्याता अति पुनीत साधक सिधि दाता।।

सनातन धर्म की उज्जवल कांति के प्रतीक “नैमिषारण्य” की महिमा हम प्रत्येक पुराण में पढ़ते और सुनते हैं नैमिषारण्य विश्व का एकमात्र ऐसा पौराणिक स्थल है, जिसका वर्णन समस्त पुराणों में सामान रूप से हुआ है नैमिषारण्य सीतापुर से 35 किलोमीटर दूरी और लखनऊ से लगभग 95 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है आइये आपको नैमिषारण्य के प्रमुख स्थलों के बारे में बताते हैं :

1. Chakra Teerth (चक्र तीर्थ)

नैमिषारण्य धाम की पहचान है "चक्रतीर्थ" और नैमिषारण्य धाम में ब्राह्मण की शुरुआत भी यहीं से होती है हम आपको बताते हैं कुछ पौराणिक मान्यताएं जो प्रचलित हैं चक्रतीर्थ को लेकर । सतयुग में शौनक ऋषि बृह्मा जी के पास गए और एक ऐसे दिव्य स्थान पर जाने की इच्छा प्रकट की जहाँ पर भक्ति , ज्ञान और वैराग्य तीनो गुणों को एक साथ प्राप्त किया जा सके । तब ब्रह्मा जी ने एक चक्र दिया और कहा जहाँ पर इस चक्र की नेमि गिरेगी, वही पर पवित्र स्थान समझकर यज्ञ और तप करें चक्र की नेमि इस स्थान पर क्षीण होने के कारण इस स्थान का नाम नैमिषारण्य पड़ा । चक्रतीर्थ महान पुण्यदायी है और सभी प्रकार के पापों को नष्ट करने वाला है। पांडवो ने अपने कुल सम्बन्धियों की आत्मा की शांति के लिए 12 वर्षो तक तप किया । सोमवती अमावस्या पर यहाँ पर स्नान का विशेष महत्व है



2. Latita Devi Temple (ललिता देवी मंदिर) 

ललिता देवी मंदिर चक्रतीर्थ के समीप ही पैदल दूरी पर स्थित है चक्र तीर्थ में स्नान और दान के पश्चात श्रद्धालु मां ललिता के दर्शन के लिए अवश्य जाते हैं विभिन्न पुराणों में वर्णित है कि सती ने दक्षयज्ञ मे शरीर त्याग के उपरान्त शिव जी सती जी के पर्थिव शव को 

कंधे  पर डालकर से विचरण करने लगेजिससे सृष्टि संहार कार्य बधित हो गया तब विष्णु ने लोक कल्याण की भावना से प्रेरित हो सती माता के शव के 108 टुकड़े किये जो शक्तिपीठ के नाम से प्रसिद्ध हुये उसमे से नैमिष मे स्थित शक्तिपीठ लिंगधारणी ललिता नाम से प्रसिद्ध है ललिता देवी मंदिर में शक्ति स्वरूपा जो समस्त मनोकामनाएं पूर्ण करने में सक्षम हैं - स्वयं विराजमान हैं  



3. Rudravart Temple (रुद्रावर्त मंदिर)

वैसे तो भगवान भोलेनाथ के पूरे देश भर में अनेकानेक तीर्थ स्थान हैं लेकिन शायद ही आपने भोले के किसी ऐसे स्थान के बारे में सुना होगा, जहां शिवलिंग किसी को दिखाई नहीं देता है। पौराणिक मान्यताओं की मानें तो सीतापुर के नैमिष में रुद्रावर्त नामक स्थान पर गोमती नदी के किनारे बनें एक कुण्ड के अंदर स्थित शिवलिंग को बाबा रुद्रावर्त के नाम से जाना जाता है। वहीं कुण्ड के बाहर ही कुछ दूरी पर एक मंदिर भी है जिसमें भगवान शिव का रुद्र अवतार के रूप में शिवलिंग स्थापित है। रुद्रावर्त की मान्यता इस वजह से और बढ़ जाती है की यहां एक निश्चित स्थान पर ही बेलपत्र जल के अंदर जाती है और इसके लिए भक्तों को पहले  नमः शिवाय का नाम लेना होता है। रुद्रावर्त में बेलपत्र ही नहीं गाय के दूध को इस कुण्ड के जल में अंदर तक एक ही धार के साथ जाते हुए भी देखा जाता है। रुद्रावर्त में हैरान कर देने वाली तस्वीरें तब दिखाई देती है जब भगवान शिव को अर्पित किये गए फलों को जल में डालने पर कुछ चंद छड़ों में प्रसाद के रूप में उनमें से एक या दो फल वापस जल में ऊपर आकर तैरने लगते हैं, जिसको श्रद्धालु प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं। बाबा रुद्रावर्त तीर्थ कुण्ड भी गंगा की संगिनी नदी गोमती के किनारे  स्थित है।



 4. Manu -Satrupa Temple (मनु और सतरूपा तपस्थली)

नैमिषारण्य आए तो मनु शतरूपा मंदिर अवश्य जाएं पुराणों के अनुसार यहीं से मानव जाति का प्रारंभ हुआ यहाँ पर इस धरा पर प्रथम मानव के रूप में आये राजा मनु और रानी सतरूपा ने ब्रह्मा के आदेशनुसार सृष्टि को सँभालने और बढ़ाने के बाद तपस्या की और त्रेतायुग में राजा दशरथ और रानी कौशल्या के रूप में जन्म लिया और भगवान राम को जन्म दिया 



5. Vyaas Gaddi (व्यास गद्दी)

मनु शतरूपा मंदिर के निकट ही वेद व्यास आश्रम है और इसे व्यास गद्दी के नाम से भी जाना जाता है यही पर वेदव्यास जी ने चार वेद ,18 पुराण और श्री मदभगवत जैसे ग्रंथो का ज्ञान अपने शिष्यों को दियायह वह स्थान है जहां वेद व्यास ने वेदों को 4 मुख्य भागों में विभाजित किया और पुराणों का गठन किया।उन्होंने श्रीमद भगवद्गीता और पुराणों का अपने शिष्यों जैमिनीवैशयामशुक देवसुथअनेगेरा और पायल कोप्रचार किया।यहाँ पर एक प्राचीन बरगद का पेड़ है,माना जाता है कि जो भी इस पेड़ के नीचे योग करता है उसे एक लाइलाज 

बीमारी से भी छुटकारा मिल सकता है 



6. Hanuman Garhi Temple (हनुमान गढ़ी मंदिर)

नैमिषारण्य में कुछ ऊंचाई पर स्थित हनुमानगढ़ी मंदिर प्रसिद्ध है, इसे बड़े हनुमान मंदिर के नाम से भी जानते हैंमाना जाता है कि भगवान श्री राम-रावण युद्ध के समय अहिरावण ने जब राम तथा लक्ष्मण का अपहरण किया तब हनुमान जी पातालपुरी मे जाकर अहिरावण का वध करके कंधों पर राम और लक्ष्मण को बैठाकर यही से दक्षिण दिशा (यानि लंका) की ओर प्रस्थान किया । अतः यहाँ दक्षिणमुखी प्रकट हुए यहीं पर पाण्डवों ने महाभारत के उपरान्त आकर 12 वर्ष तपस्या की है जिसे पांड़व किला कहते हैं यह मंदिर दक्षिण मुखी हनुमान मंदिर के नाम से प्रचलित हैजोकि दुर्लभ है यहां पर हनुमान जी की विशालकाय प्रतिमा है



7. Dadhichi Kund (दधीचि कुण्ड)

नैमिषारण्य से लगभग 12 किलोमीटर की दूरी पर मिश्रिख नामक क्षेत्र है यहीं पर एक विशाल जलाशय है जिसका नाम दधिचि कुंड हैं माना जाता है 

वृत्तासुर दैत्य का वध करने के लिये देवराज इन्द्र ने महान तपस्वी दधीचि जी से उनकी हड्डियो का दान 

मांगा तब दधीचि जी ने कहा मुझे जन कल्याण के लिये देह त्याग करने मे परम प्रसन्नता है परन्तु मै उससे पहलेसभी तीर्थों  देवी देवताओं का दर्शन करना चाहता हूँ इन्द्र ने कहा इसमें बहुत समय लग जायेगा तब तक वृत्तासुर हम सबको मार देगा इसलिए सभी तीर्थों को यहीं बुला लिया गया और उन्हें सभी तीर्थों के जल से स्नान कराया सभी तीर्थों के जल केआपस मे मिश्रण के कारण यह तीर्थ मिश्रिख तीर्थ कहलाया यह मिश्रित तीर्थ दधीचि कुण्ड के नाम से विख्यात हुआ जिसमें स्नान मार्जन करने से सभी तीर्थों के स्नान मार्जनका पुण्य प्राप्त होता हैं इसी स्थान पर दधीचि ने गायों से शरीर चटवाकर अपनी अस्थियों का दान किया जिससे वज्र बना और वृत्तासुर का वध हुआ।



8. Dev Deveshwar Dham (देव देवेश्वर धाम)

नैमिषारण्य तीर्थ के प्रमुख शिवालयों में देवदेवेश्वर धाम के बारे में यहां के प्रबंधक लालता प्रसाद सैनी बताते है कि देवदेवेश्वर धाम की स्थापना स्वयं वायुदेव ने शिव आराधना के लिए की थी। इसका वर्णन वायु पुराण में है। देव देवेश्वर धाम अत्यंत मनोहारी वातावरण में स्थित अति प्राचीन भगवान् शिव का मंदिर है इस मंदिर के पास ही एक यज्ञशाला है



9. Setu Bandh Rameshar Dham (सेतु बंध रामेश्वर धाम)

सेतु बंध रामेश्वर धाम मंदिर देव देवेश्वर धाम के पास ही गोमती नदी के तट पर भी स्थित है यहाँ के अति प्राचीन एवं विशाल शिवलिंग का दर्शन मन को आनंद एवं शांति से भर देता है मंदिर से सटे हुए गोमती नदी के तट पर आप नौका विहार का आनंद भी ले सकते हैं और मन को प्रसन्नता और शांति देने वाले घाटों का विचरण कर सकते हैं



10. Ayodha Puri Temple (अयोध्या पुरी)

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यह भगवान इंद्र द्वारा आवाहित प्रकट तीर्थ है यहाँ पर आज भी हनुमान जी का प्राचीन मंदिर स्थित है वैसे तो यहां पर भीड़भाड़ कम होती है लेकिन नैमिषारण्य के धार्मिक महत्व में इस मंदिर का विशेष स्थान है



11. Panchmukhi Hanuman Temple (पंचमुखी हनुमान मंदिर)

ललिता देवी मंदिर के समीप पंचमुखी हनुमान मंदिर भी धार्मिक रूप से महत्व रखता है यहाँ पर हनुमान जी के पंचमुखी स्वरुप के दर्शन होते है जो की दुर्लभ है । मंदिर के आसपास काफी ज्यादा बंदर देखे जा सकते हैं जिनको यहां आने वाले श्रद्धालु प्रसाद स्वरूप लड्डू व अन्य खानपान की चीजें देते हैं



12. 84 Kosi Parikrama (84 कोसी परिक्रमा)

नैमिषारण्य के इन सभी जगहों पर भ्रमण पर अवश्य जाना चाहिए लेकिन अगर आप आध्यात्मिक और धार्मिक दृष्टि की गहराई से नैमिषारण्य को समझना और देखना चाहते हैं, तो 84 कोसी परिक्रमा के बारे में आपको अवश्य जानना चाहिए  जो कि ज्यादातर साधु-संतों के द्वारा की जाती है  नैमिषारण्य की चौरासी कोसी परिक्रमा विशेष महत्व है और यह परिक्रमा फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को चक्रतीर्थ में स्नान कर, फाल्गुन मास के शुक्लपक्ष की प्रतिपदा को सिद्ध विनायक जी के पूजा अर्चना कर आरम्भ होती है। 

यह यात्रा पन्द्रह दिनों तक चलती है। इसके करने से सम्पूर्ण तीर्थों का फल प्राप्त होता है और मनुष्य 84 लाख योनियों के भयबन्धन से मोक्ष प्राप्त करता है। कहते है की जो मनुष्य पृथ्वी के सभी तीर्थो की यात्रा करने में सक्षम नहीं है -वो अगर नैमिषारण्य की चौरासी कोसी परिक्रमा करेगा,ब्राह्मणो को दान धर्म करेगा,तो उसे समस्त तीर्थो का फल प्राप्त होगाइस दौरान श्रद्धालु जानकी कुंड, मानसरोवर, महादेव, कैलाशन, हत्या हरण, नर्मदेश्वर, गंगा सागर, कपिल मुनि, नीलगंगा, द्रोणाचार्य पर्वत, चंदन तालाब, व्यास गद्दी, मनु सतरूपा तपस्थली, हनुमान गढ़ी, देवदेवेश्वर, रुद्रावर्त, चक्रतीर्थ, ललिता देवी आदि मंदिरों का दर्शन करते हैं। संतों, महंतों, पीठाधीश्वरों की अगुवाई में इस परिक्रमा की 252 किलोमीटर की दूरी पैदल चलकर पूरा किया जाता है। इस दौरान तमाम श्रद्धालु घोड़े, हाथी, पालकी आदि का प्रयोग करते हैं।